फिर से जी उठा ‘विक्रांत’, समुद्र की लहरों पर करेगा राज

0

शुक्रवार यानि 2 सितंबर भारतीय नौसेना के लिए बेहद खास रहा. आज नौसेना को नया प्रतीक चिह्न मिल गया. पीएम नरेंद्र मोदी ने इसका अनावरण किया. इस दौरान पीएम मोदी ने देश के पहले स्वदेशी एयरक्रॉफ्ट करियर आईएनएस विक्रांत को भी नौसेना को समर्पित किया. आज हम आपको बताएंगे कि भारतीय नौसेना के इतिहास में क्या-क्या बदलाव हुए. भारत में नौसेना का विस्तार कैसे हुआ. इसकी शुरुआत कहां से हुई. छत्रपति शिवाजी महाराज की नौसेना कैसी थी.

फिर से बनेगा नौसेना की ढाल…

इस स्वदेशी वायुयान वाहक का नाम भारत के पहले विमान वाहक पोत के नाम पर रखा गया है, जिसने साल 1971 के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. आईएनएस विक्रांत को साल 1961 में नौसेना में शामिल किया गया था. वहीं, जब साल 1971 की लड़ाई छिड़ी तो विक्रांत विशाखापट्टनम में तैनात था. साल 1971 के बाद विक्रांत की काफी मरम्मत करवाई गई. लेकिन, कुछ साल तक सेवा में रहने के बाद इसे साल 1997 में सेवामुक्त कर दिया गया.

सेवामुक्ति के बाद भी आईएनएस विक्रांत आकर्षण का केंद्र रहा है. इसके मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया के पास रखा गया था. अब इसके नाम पर स्वदेशी विक्रांत तैयार किया गया है. यू कहें कि विक्रांत फिर से जी उठा है. जो भारत की नौसेना के लिए फिर से ढाल बनेगा और समुद्र की लहरों पर राज करेगा.

आज हम आपको बताएंगे कि भारतीय नौसेना के इतिहास में क्या-क्या बदलाव हुए. भारत में नौसेना का विस्तार कैसे हुआ. इसकी शुरुआत कहां से हुई. छत्रपति शिवाजी महाराज की नौसेना कैसी थी.

भारतीय नौसेना का इतिहास…

वैसे तो भारतीय नौसेना का इतिहास करीब 8000 साल से भी पुराना है. इसका उल्लेख वेदों में भी है. दुनिया की पहली ज्वार गोदी का निर्माण हड़प्पा सभ्यता के दौरान 2300 ई.पू. के आसपास लोथल में माना जाता है, जो इस समय गुजरात के तट पर मौजूद मंगरोल बंदरगाह के निकट है. 90 हजार साल पुराने ऋग्वेद में भी नौसेना का जिक्र है. भगवान वरुण के रूप में. भगवान वरुण को समुद्र और नदियों का देवता माना जाता है.

इंडियन नेवी की वेबसाइट के अनुसार, आदिकाल में जहाजों द्वारा इस्तेमाल किए गए सागर के मार्गों के ज्ञान का वर्णव भी वेद में है. इसमें सौ चप्पुओं से चलने वाले जहाज अन्य राज्यों को नियंत्रण में लाने में इस्तेमाल किए गए. इसमें प्लेव का भी जिक्र है. जो तूफान आने पर पोत को स्थिर रखने का काम करता था. आज के जमाने में इसे आधुनिक स्टेबलाइजर्स कहा जा सकता है. इसी तरह, अथर्वेद में नौकाओं का उल्लेख है जो विशाल, अच्छी तरह से निर्मित और आरामदायक थे.

नौसेना का बदलाव…

हालांकि, समय के साथ-साथ समुद्री सेना बदलती रही. उत्तर-पश्चिम भारत में सिकंदर के राज में नौसेना में फिर बदलाव दिखा. सिंकदर ने पाटला पर एक बंदरगाह का निर्माण किया, जहां अरब सागर में प्रवेश करने से पहले सिंधु नदी दो शाखाओं में बंट जाती है. तब सिकंदर ने सिंध में निर्मित जहाज को भी अपने बेड़े में शामिल किया.

तेरहवीं शताब्दी में हुई गिरावट…

भारतीय समुद्री शक्ति की गिरावट तेरहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों के भारत में आने से शुरू हुई. बाद में व्यापार के लिए लाइसेंस की एक प्रणाली लगाई गई और सभी एशियाई जहाजों पर इन्हें लागू किया गया. साल 1529 में बॉम्बे हार्बर के थाना बंडोरा, और करंजा में नौसेना नियुक्ति करने पर सहमति बनी. साल 1531 में नौसेना की एक विशाल समीक्षा आयोजित की गई थी. तब पुर्तगालियों ने साल 1534 में बंदरगाह का पूरा नियंत्रण ले लिया और अंत में इसे साल 1662 में चार्ल्स द्वितीय और ब्रेगेंजा के इंफाना कैथरीन के बीच शादी की एक संधि के तहत ब्रिटिशर्स को सौंप दिया.

कैसे हुई शुरुआत… शिवाजी ने बनाया नौसेना का बेड़ा…

साल 1612 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में इंडियन मरीन की शुरुआत की. साल 1685 में इसका नाम बदलकर बंबई मरीन कर दिया गया. ये साल 1830 तक चला. 17वीं सदी में नौसेना का बड़ा पुनरुत्थान देखा गया. तब मुगल और अंग्रेज दोनों ही भारत पर राज करते थे. कई राजा इसके खिलाफ अलग-अलग तरह से लड़ाई लड़ रहे थे. इन्हीं में से एक नाम था मराठा राजा छत्रपति शिवाजी का. शिवाजी ने समुद्री तट से होने वाले हमलों से बचने के लिए नौसेना का बेड़ा बनाया.

सिधोजी गुजर और बाद में कान्होजी आंग्रे को एडमिरल बनाया. कान्होजी के साथ मराठा बेड़े के अंग्रेजी हुकूमत, डच और पुर्तगाली नौसेना का मुकाबला करते हुए कोंकण तट पर कब्जा किया. तब शिवाजी की नौसेना में 5000 जवान थे. करीब 60 जंगी जहाज भी थे. विदेशी ताकतों से समुद्री तट को बचाने के लिए देश में बनी ये पहली नेवी थी. हालांकि, साल 1729 में आंग्रे की मौत के बाद समुद्री शक्ति पर मराठा नेतृत्व में गिरावट आई.

रॉयल इंडियन नेवी की शुरुआत और हटाया गया ‘रॉयल’ शब्द…

8 सितंबर, 1934 में भारतीय विधान परिषद ने भारतीय नौसेना अनुशासन अधिनियम पारित किया और रॉयल इंडियन नेवी की शुरुआत हुई. भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद भारत, पाकिस्तान की सेनाएं बनीं तो नौसेना रॉयल इंडियन नेवी और रॉयल पाकिस्तान नेवी के रूप में बंट गई. इसके बाद 26 जनवरी, 1950 को इंडियन नेवी में से रॉयल शब्द को हटा लिया गया. उसे भारतीय नौसेना नाम दिया गया.

8 साल बाद बदला ध्वज का ‘निशान’…

आजादी के पहले तक नौसेना के ध्वज में ऊपरी कोने में ब्रिटिश झंडा बना रहता था. इसकी जगह तिरंगे को जगह दी गई. इसके अलावा क्रॉस का चिन्ह भी था. ध्वज में बना क्रॉस सेंट जार्ज का प्रतीक था. जिसे अब बदल दिया गया है.

साल 1950 के बाद पहली बार भारतीय नौसेना के ध्वज को साल 2001 में बदला गया था. तब केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार थी. उस वक्त सफेद झंडे के बीच में जॉर्ज क्रॉस को हटाकर नौसेना के एंकर को जगह दी गई थी. ऊपरी बाएं कोने पर तिरंगे को बरकार रखा गया था. नौसेना के ध्वज में बदलाव की मांग लंबे समय से लंबित थी, जिसमें बदलाव के लिए मूल सुझाव वाइस एडमिरल वीईसी बारबोजा की ओर से आया था.

हालांकि, साल 2004 में ध्वज और निशान में फिर से बदलाव किया गया. ध्वज में फिर से रेड जॉर्ज क्रॉस को शामिल कर लिया गया. तब कहा गया कि नीले रंग के कारण निशान स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दे रहा था. नए बदलाव में लाल जॉर्ज क्रॉस के बीच में राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ को शामिल किया गया था. साल 2014 में फिर से इसमें बदलाव हुआ. तब देवनागरी भाषा में राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे सत्यमेव जयते लिखा गया.

वहीं, आज इसमें फिर से बदलाव किया गया है. एक बार फिर ध्वज के नए निशान से रेड जॉर्ज क्रॉस को हटा दिया गया है. ऊपर बाईं ओर तिरंगा बना है. इसके साथ ही नेवी का चिन्ह इसमें शामिल किया गया है. बगल में नीले रंग के बैकग्राउंड पर गोल्डर कलर में अशोक चिह्न बना है. चिन्ह में शेर को दहाड़ते हुए दिखाया गया है. नीचे संस्कृत भाषा में ‘शं नो वरुण:’ लिखा गया है. इसका मतलब है जल के देवता वरुण हमारे लिए मंगलकारी रहें.

 

28 (नौट) समुद्री मील है स्पीड…

आईएएस विक्रांत में 2,300 कंपार्टमेंट के साथ 14 डेक हैं जो लगभग 1,500 जवानों को ले जा सकती और इनकी भोजन की जरूरत को पूरा करने के लिए, इसकी रसोई में लगभग 10,000 रोटियां बनाई जा सकती हैं. इस युद्धपोत में 88 मेगावाट बिजली की चार गैस टर्बाइनें लगी हैं और इसकी अधिकतम गति 28 (नौट) समुद्री मील है. यह 20,000 करोड़ की लागत से बना है. यह पूरी परियोजना रक्षा मंत्रालय और सीएसएल के बीच डील के तीन चरणों में आगे बढ़ी है. यह मई 2007, दिसंबर 2014 और अक्टूबर 2019 में पूरी हुई हैं. यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ का आदर्श उदाहरण है, जो ‘मेक इन इंडिया’ पहल पर जोर देता है.

एफिल टावर के वजन से 4 गुना ज्यादा लगा लोहा…

आईएनएस विक्रांत का वजन 45000 टन है. यानी इसे बनाने में फ्रांस स्थित एफिल टावर के वजन से चार गुना ज्यादा लोहा और स्टील लगा है. इतना ही नहीं, इसकी लंबाई 262 मीटर और चौड़ाई 62 मीटर है. यानी यह फुटबॉल के दो मैदान के बराबर है. पहले स्वदेशी युद्धपोत में 76 प्रतिशत स्वदेशी उपकरण लगे हैं. इस पर 450 किमी मारक क्षमता वाली ब्रह्मोस मिसाइल भी तैनात रहेगी. इसमें 2400 किमी केबल लगी है. यानी कोच्चि से दिल्ली तक केबल पहुंच सकती है.

Also Read: INS विक्रांत 2022: पीएम मोदी ने भारतीय नौसेना को सौंपा पहला स्वदेशी विमानवाहक युद्धपोत, कहा- भारत की बेटियों के लिए कोई बंधन नहीं

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More