कब आएंगे बुनकरों के अच्छे दिन?

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बुनकरों की जिंदगी चरखे की रफ्तार के साथ घूमती है। देश भर के बुनकरों को उम्मीद थी कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी जिंदगी में भी बदलाव आएगा, लेकिन बीते दो वर्षो में कुछ हो नहीं पाया। यूपी में तो बुनकरों की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। जिसके चलते बेरोजगारी बढ़ने लगी है। चरखे का चलना उनके लिए आजीविका का बंदोबस्त है और चरखा उनकी जिंदगी की गाड़ी का पहिया है, जिसका चलना बेहद जरूरी है।

काशी के बुनकर बेहाल!

उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी काशी प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र से जुड़े बुनकर आज भी अच्छे दिनों के इंतजार में हैं। केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय की ओर से कराए गए सर्वेक्षण में ही यह बात सामने आई है कि यहां हथकरघा बुनकरों की माली हालत काफी खराब है। काशी में बुनकरों के चेहरे की चमक लौटाने के लिए मोदी सरकार ने ‘ई-बाजार’ मॉडल के रूप में हाईटेक कदम भी उठाया, लेकिन यह योजना भी फ्लॉप साबित हुई। काशी में ई-कॉमर्स के माध्यम से शुरू की गई इस योजना को ई-बाजार मॉडल का नाम दिया गया। कपड़ा मंत्रालय ने स्नैपडील और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को बनारसी साड़ी उद्योग में उतारा था, लेकिन इससे आम बुनकरों को कोई फायदा नहीं हुआ।

ई-बाजार मॉडल के फ्लॉप होने की वजहों के बारे में बनारस के बुनकरों का कहना है कि आम बुनकरों के ई-बाजार से न जुड़ने की मुख्य वजह इस प्रक्रिया के तहत माल की बिक्री में देरी होना है। बुनकर चाहते है कि बनारसी साड़ी करघे से उतरते ही हाथों हाथ बिक जाएं और उससे प्राप्त आय से उधार चुकता करने के साथ ही परिवार के लिए भी कुछ बचाया जा सके, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। इसके अलावा इन बुनकरों को ई-कॉमर्स, ई-बैंकिंग, ऑनलाइन लेनदेन के तौर-तरीके की कोई जानकारी नहीं है।

मऊ कहीं खो ना दे अपनी पहचान

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू ने मऊ को भारत का मैनचेस्टर कहा था। मऊ में हथकरघा उद्योग की शुरूआत 16वीं सदी में मानी जाती है। मऊ जनपद बुनकर बाहुल्य इलाका है, यहां लाखों की संख्या में बुनकर काम करते हैं। लेकिन यहां के बुनकर खाड़ी देशों में पलायन करने को मजबूर हैं।

जानकारी के मुताबिक हजारों की संख्या में यहां से बुनकर खाड़ी देशों में रोजी-रोटी की जुगाड़ में जद्दोजहद कर रहे हैं। सरकारें बुनकरो के लिए घोषणाएं करके सस्ते बस्ते में डाल देती हैं और उन योजनाओं का लाभ किसको मिलता है यह तो सरकारें ही बता सकती हैं। आज मऊ के बुनकरों की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई है कि वे पैसे के आभाव मे इलाज से भी वंचित हैं।

मुबारकपुर में बनी साड़ी पूरे देश में बनारसी साड़ी के नाम से मशहूर है। यहां की साड़िया देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बनाए हैं, लेकिन अगर यही हालत रहा तो आने वाले समय में ताने बाने का यह शहर अपनी पहचान जरूर खो देगा। मऊ के बुनकरो का कहना है कि इस साड़ी कारोबार में हम लोगों को बहुत सारी पेरशानियां उठानी पड़ती हैं। सबसे बडी समस्या बिजली की है, जिसका कोई निर्धारित समय निश्चित नहीं है। रात में दो बजे बिजली आने पर भी उन्हें उठकर लूम चलाना पड़ता है। इस मंदी के समय में बुनकर एक पैसा भी नही बचा पा रहे है,  जिसकी वजह से वे अपने बच्चों की शादी तक करने की स्थिति में नहीं है।

खामोश हो सकती है खट-खट की आवाज

गोरखपुर के अंधियारीबाग, रसूलपुर, डोमिनगढ़ समेत 10 किलोमीटर के दायरे में बुनकर हथकरघा की खट-खट के बीच दिन-रात एककर परिवार की आजीविका चलाते हैं। ये लोग 16 से 18 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद बमुश्किल 300 से 400 रुपए ही कमा पाते हैं। लेकिन, उनके इस आमदनी पर भी सवालिया निशान लग गया है, क्योंकि बिजली कटौती की वजह से उनका ये कारोबार खतरे में पड़ गया है।

इन बुनकरों की मानें तो दिन में बिजली न होने के चलते इन्हें रात भर मेहनत करनी पड़ती है। इतनी मेहनत के बावजूद इनके सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि उनके पास बाजार ही नहीं है। पहले राज्य के कई बड़े शहरों और नेपाल तक में उनके हाथ के बने सामान के लिए बड़ा बाजार मिल जाता था। वहां उनके बनाए सामान की इज्जत होती थी। लेकिन, बदलते वक्त के साथ गोरखपुर हथकरघा उद्योग दम तोड़ने लगा है।

बुनकरों का कहना है कि लोग फैशन की होड़ में अपनी विरासत को भूलते चले जा रहे हैं। बड़े उद्योगपतियों के इस बाजार में कूदने के कारण हथकरघा ने पावरलूम की शक्ल ले ली। अब बिजली से चलने वाले पावरलूम के कारण हथकरघा नाम मात्र ही रह गया।

बुनकर बड़े उद्योगपतियों द्वारा लगाए गए पावरलूम पर काम करने के लिए मजबूर हैं। क्योंकि हथकरघा के आगे पावरलूम से बने कपड़ों की गुणवत्ता और उत्पादन में बेहद फर्क है। बुनकरों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी बुनकरों का दर्द दिखाई नहीं दे रहा। हालांकि अखिलेश ने बुनकरों की बदहाल स्तिथि पर कहा कि सरकार आने वाले समय में 60 वर्ष की उम्र तय कर चुके बुनकरों को 500 रुपया महीना पेंशन देगी।

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