क्या बाबूगिरी ने ली गोरखपुर में 36 बच्चों की जान?

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कभी कभी लालफीताशाही या बाबूगिरी कितना भयावह मंजर लेकर आती है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है- गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 36 बच्चों की एक साथ मौत।

बाबूगिरी केचलते बीआरडी मेडिकल कॉलेज में आक्सिजन की सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड को दर्जनों रिमाइंडर के बाद जब पेमेंट पहुंचा तब तक बच्चों की मौतें हो चुकी थीं।

इसके बावजूद अपना मुंह छिपाने के लिए सरकार की ओर से मेडिकल कॉलेज में आक्सिजन की सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड पर पुलिस ने छापे की कार्रवाई की। घटना के बाद से भंडारी फरार चल रहे हैं। हालांकि कंपनी की ओर से दावा किया जा रहा है कि आक्सिजन की सप्लाई रोके जाने से मौतें नहीं हुई हैं। यही बात सरकार भी कह रही है कि अक्सिजन की सप्लाई रोके जाने की वजह से मौतें नहीं हुई हैं।

इस बारे में शुरू से सरकारी अधिकारियों की ओर से विरोधाभासी बयान आए। जिलाधिकारी बयान देते हैं कि मौत आक्सीजन सप्लाई रुकने से हुई और जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी कहते हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं है।

फर्म ने प्राचार्य के ही नाम पत्र लिखा कि उन्हें करीब सत्तर लाख का भुगतान अब तक नहीं हुआ है और ऐसे में लंबे समय तक आक्सीजन की सप्लाई जारी नहीं रखी जा सकती है। बताया जा रहा है कि पत्र पहले ही भेजा गया था लेकिन घटना से एक दिन पहले मुख्यमंत्री योगी के साथ हुई बैठक में भी कालेज के प्राचार्य ने इस बारे में कोई चर्चा नहीं की। यही उनके निलंबन का कारण बना।

उधर निलंबित प्रिंसिपल आर एन मिश्र ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उन्होंने निलंबन से पहले ही घटना की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा लिख लिया था। उन्होंने कहा है कि उनकी कोई गलती नहीं है। उन्होंने भी कहा है कि कोई भी मौत आक्सीजन की कमी से नहीं हुई है।

इस पूरे घटनाक्रम में कंपनी का पक्ष इसलिए मजबूत नजर आ रहा है क्योंकि इस संबंध में 10 अगस्त को अस्पताल के एक कर्मचारी द्वारा कॉलेज के प्राचार्य को लिखा एक पत्र भी सामने आया है। पत्र में बताया गया था कि लिक्विड आक्सिजन का स्टॉक खत्म होने के संबंध में 3 अगस्त को भी मेडिकल कॉलेज प्रशासन को जानकारी दी गई थी। पत्र में साफ लिखा गया है कि पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड ने 63.65 लाख रुपये के बकाए का भुगतान न होने पर आक्सिजन सप्लाई न करने की बात कही है।

जिलाधिकारी ने इस बात की पुष्टि की कि इस वॉर्ड में पिछले तीन-चार दिनों में मरने वालों की संख्या साठ है, लेकिन वहां मौजूद लोगों और मरीजों के तीमारदारों का कहना है कि मौतों का आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है।

वहीं मुख्यमंत्री अभी भी बच्चों की मौत के पीछे साफ-सफाई की कमी का बहाना बना रहे हैं। इलाहाबाद में एक सभा में योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को कहा कि उनके गृह नगर में बच्चों की मौत गंदगी भरे वातावरण और खुले में शौच के चलते हुई है।वे सरकारी कमियों को स्वीकार करने को तैयार नहीं।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अगस्त के महीने में यहां हर साल बच्चों की मौतें हुई हैं। अगस्त 2014 में यहां 567, अगस्त 2015 में 668 और 2016 में 587 मौतें हुई थीं। यानी हर रोज मौतों का आंकड़ा तीनों सालों में क्रमश: 18, 21.5 और 18.9 है।’ लेकिन आक्सिजन की कमी से कभी एक साथ इतनी मौतें नहीं हुर्इं हैं। सरकार आंकड़े उपलब्ध कराते समय यह बताना भूल जाती है कि अति गंभीर किस्म के बच्चे तो मौत की आगोश में जाते हैं पर इस बार का मामला बिल्कुल ही अलग है। यहां मौतें तो आक्सिजन की कमी से हुई हैं।

इसलिए चहुंओर यह सवाल अब यह उठाया जा रहा है कि पुलिस पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड और उसके मालिक पर तो छापे की कार्रवाई कर रही है, पर आखिर स्वास्थ्य विभाग के बड़े अधिकारियों और मेडिकल कॉलेज प्रशासन पर कार्रवाई कब होगी? क्या बाबूगिरी का भी कभी अंत होगा?

शायद चारों ओर से हो रही आलोचनाओं से बचने के लिए उत्तर प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन को कहना पड़ा, ‘गैस सप्लाई करने वाले डीलर का कुछ भुगतान बाकी था। एक अगस्त को इस बारे में चिट्ठी लिखी गई थी। 5 तारीख को लखनऊ में डीजी के दफ़्तर से भुगतान भेजा गया था। 7 तारीख को भुगतान कॉलेज के खाते में आया, लेकिन डीलर का कहना है कि उसको भुगतान 11 तारीख को मिला। भुगतान में देरी की उच्चस्तरीय जांच की जा रही है।’

लेकिन सवाल यही कि सब कुछ ठीक था तो बच्चे मरे कैसे? सरकार को इसका जवाब तो देना ही होगा।

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