लोकसभा चुनाव हारते ही बुआ-बबुआ आमने-सामने

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आशीष बागची

2014 के लोकसभा चुनावों में शून्‍य सीटों के मुकाबले 2019 के चुनाव में सपा-रालोद के साथ गठबंधन करके दस सीटें जीत लेने के बाद बसपा संगठन में जान फूंककर मायावती, बबुआ अखिलेश को टाटा कहकर निकल गयीं।

यही हाल अखिलेश का भी रहा। अखिलेश ने भी बिना देरी किये अपनी तरफ से गठबंधन तोड़ने के संकेत दे दिये। अखिलेश ने आजमगढ़ में पत्रकारों से साफ कह दिया कि फिलहाल उनकी पार्टी अकेले ही आगे बढ़ेगी और 2022 में सूबे में समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी। इस तरह भाजपा को हराने के जिस मकसद से यूपी में महागठबंधन बना था उसकी करारी हार के बाद एसपी और बीएसपी की राहें अब जुदा होती साफतौर पर दिख रही हैं। इस तरह 144 दिनों तक यह गठबंधन चला और चुनाव नतीजे आने के 12 दिन बाद ही बिखर गया।

गठबंधन तोड़ने का ऐलान-

दरअसल एक प्रेस कांफ्रेंस के माध्‍यम से बसपा प्रमुख मायावती ने मंगलवार को समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव अपनी पार्टी के हालात सुधारें, अभी गठबंधन पर स्थाई ब्रेक नहीं लगा है। लेकिन उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में 11 सीटों पर बसपा अकेले लड़ेगी। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में सपा का बेस यानी यादवों के वोट ही उन्हें (सपा को) नहीं मिले। खुद डिंपल यादव और उनके बड़े नेता चुनाव हार गए। यह चिंता का विषय है। इससे पहले सोमवार को उन्होंने दिल्ली में लोकसभा चुनाव के नतीजों की समीक्षा की थी। मायावती ने पदाधिकारियों और सांसदों के साथ हुई बैठक में कहा था कि सपा से गठबंधन का फायदा नहीं हुआ।

बबुआ को बोला बाय बाय-

मायावती ने साफ कहा, ”हमने दिल्ली की समीक्षा बैठक में इस पर चिंतन किया। बसपा को गठबंधन करने से कुछ खास सफलता नहीं मिली। सपा को बसपा की तरह सुधार लाने की जरूरत है। सपा के लोगों ने एकजुटता का मौका इस चुनाव में गंवा दिया है। मुझे लगता है कि अगर सपा प्रमुख अपने राजनीतिक कार्यों के साथ अपने लोगों को मिशनरी बनाने में कामयाब हुए तो आगे भी हम साथ-साथ चलेंगे। अभी हमने गठबंधन पर ब्रेक नहीं लगाया है। फिलहाल, हमने उपचुनावों में अलग लड़ने का फैसला लिया है।”
इस दौरान मायावती ने एसपी कार्यकर्ताओं को बीएसपी कार्यकर्ताओं से सबक लेने की नसीहत तक दे डाली।

गठबंधन तोड़ने के साफ संकेत-

सोमवार को दिल्‍ली में हुई बैठक में ही मायावती ने गठबंधन तोड़ने के संकेत देते हुए कहा था, ”सपा के साथ गठबंधन सोच-समझ कर किया था। हम अपने नफे-नुकसान को जानते थे, लेकिन इस गठबंधन से कोई फायदा नहीं हुआ।”

मायावती ने खुद स्थिति साफ की-

चुनाव में हार के बाद से ही समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन टूटने की चर्चाएं जोरों पर थीं। सोमवार की बसपा की बैठक के भी जो निष्‍कर्ष थे वे भी साफ थे। इसे और साफ करने के लिए मायावती खुद सामने आयीं और फिलहाल गठबंधन पर ब्रेक लगाने की पुष्टि कर दी।

अखिलेश ने भी दिया गठबंधन तोड़ने का इशारा-

मायावती के बयान के बाद अखिलेश के 2022 में सूबे में समाजवादी पार्टी की सरकार बनाने की बात कहना ही पर्याप्‍त है कि गठबंधन अंतिम सांसें गिन रहा है। उन्‍होंने साफतौर पर यह नहीं कहा कि वे गठबंधन तोड़ रहे हैं पर, साफ है कि अब यह खत्‍म होने के कगार पर है।

‘2022 में बनेगी एसपी सरकार’

दूसरी ओर सोमवार को आजमगढ़ पहुंचे अखिलेश यादव ने यह जरूर कहा कि एसपी और बीएसपी के साथी मिलकर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ेंगे पर, मंगलवार को मायावती के बयान आने के बाद एसपी अध्यक्ष के सुर बदले दिखे। अखिलेश ने फौरन संकेत दे दिया कि उनकी पार्टी भी अकेले लड़ने के लिए तैयार है।

अकेले लड़ने का फायदा-

राजनीतिक विश्लेषकों में यह चर्चा चल पड़ी है कि यदि गठबंधन में दोनों दलों का यह हाल हुआ है तो फिर बुआ-बबुआ का अकेले लड़ने का फैसला कितना फायदेमंद हो सकता है।

भाजपा बेहद खुश-

मायावती की अखिलेश को नसीहत के बाद अखिलेश के पलटवार से भाजपा बेहद खुश है और उसे न सिर्फ आगामी दिनों होने वाले उपचुनावों में जीत दिख रही है बल्कि 2022 के चुनाव में भी उसे बड़ी जीत मिलती दिख रही है।

गठबंधन चल सकता था-

साफ है कि सपा-बसपा के गठबंधन में दूरियां बढ़ गई हैं क्योंकि मायावती कभी उपचुनाव नहीं लड़ा करती थीं। वहीं समाजवादी पार्टी को दो तरह का नुक़सान हुआ। अखिलेश की छवि दूसरे व्यक्ति को तौर पर बनी। वह मायावती को सम्मान देते रहे। लोगों को ये लगा कि उनकी लीडरशिप में भी कमजोरी है। इससे लगता है कि सपा-बसपा गठबंधन का ये प्रयोग सफल हो सकता था अगर और रियाज दिया गया होता। जाहिर है जितनी मेहनत मोदी और अमित शाह ने की उसका दस प्रतिशत भी उत्‍तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश ने नहीं की, अन्‍यथा नतीजा दूसरा होता।

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