भाजपा के लिए बुरी खबर, कंवर हसन ने दिया RLD को समर्थन

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कर्नाटक के बाद अब भाजपा के लिए कैराना (kairana) लोकसभा उपचुनाव में भी मुश्किलें खड़ी होती दिखाई दे रही है। कंवर हसन ने आरएलडी को समर्थन देकर भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ा दी है। यूपी के कैराना उपचुनाव में नया सियासी ट्विस्ट देखने को मिल रहा है। निर्दलीय प्रत्याशी कंवर हसन ने राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) को समर्थन दे दिया है। तबस्सुम के विपक्ष में उनके देवर कंवर हसन निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे।

प्रत्याशी तबस्सुम हसन का समर्थन किया था

कांग्रेस नेता इमराज मसूद कई दिनों से कंवर हसन को समर्थन के लिए मनाने में लगे थे। इससे यह लगभग यह हो गया है कि अब कैराना में महागठबंधन बनाम बीजेपी की सियासी लड़ाई होगी। कैराना में एक तरफ जहां बीजेपी चुनाव लड़ रही है वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस, बीएसपी, एसपी और आरएलडी ने प्रत्याशी तबस्सुम हसन का समर्थन किया था। बता दें कि एसपी ने कैराना में राष्ट्रीय लोकदल (आरजेडी) से गठबंधन किया है। यहां के तबस्सुम समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी हैं लेकिन वह आरएलडी के चुनाव चिह्न से चुनाव लड़ रही हैं।

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बीजेपी ने कैरना में दिवंगत सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को मैदान में उतारा है। कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट पर 28 मई को वोटिंग होगी और मतगणना के लिए 31 मई की तारीख तय की गई है। तबस्सुम के विपक्ष में उनके देवर कंवर हसन निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। ऐसे में बीजेपी को एक राहत यह थी कि कंवर हसन गठबंधन के वोट काटेंगे और इससे बीजेपी को फायदा होगा।

एक सुर में तबस्सुम को समर्थन देने की बात कही थी

कंवर के पिता यहां से चेयरमैन भी हैं। यहां पर कंवर को 20 से 30 हजार के आसपास वोट मिलने की उम्मीद थी। यह वोट मुस्लिम वोट माना जा रहा था। बीजेपी का समीकरण था कि महागठबंधन के मुस्लिम वोट पटकर कंवर हसन के पक्ष में जाएंगे। लेकिन अब कंवर का आरएलडी को समर्थन देने से बीजेपी के लिए यहां से जीत मुश्किल हो जाएगी। गुरुवार को आरएलडी नेता जयंत चौधरी कंवर हसन के घर पहुंचे। यहां सबने एक सुर में तबस्सुम को समर्थन देने की बात कही थी।

सियासी जानकारों की मानें तो बीजेपी 2014 और 2017 के चुनाव वेस्ट यूपी में एक तरह से एकतरफा जीती। उस क्रम को कैराना में भी बरकरार रखना बीजेपी का मकसद है। वेस्ट यूपी में पिछड़ों खासकर जाटों का साथ मिले बिना यह मुमकिन नहीं लगता है। बीजेपी के प्रति 2014 और 2017 सरीखा जाटों का लगाव कम होने का एहसास खुद पार्टी को भी है। ऐसे में इस बार जीत के लिए बीजेपी पूरा जोर लगा रही है।

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