लो भाई, अब इंडियन टॉयलट पर भी बवाल

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बोहरा समुदाय के आध्यात्मिक गुरु सैयदना आलीकदर मुफद्दल मौला ने अपने समाज के लोगों से कहा है कि वे वेस्टर्न टॉइलेट की जगह इंडियन टॉइलट का इस्तेमाल करें। मौला का कहना है कि यह पहल अच्छी सेहत और संस्कृति को बचाने में मददगार है। बोहरा समुदाय के लोगों को इसके लिए मस्जिद के जरिए संदेश दिए जा रहे हैं।हालांकि, बोहरा समाज के कुछ लोगों ने इस संदेश को ‘जबरन’ थोपने पर सवाल भी उठाए हैं। बांद्रा में रहने वाली दाऊदी बोहरा समुदाय की सकीना से भी यह अपील की गई। उससे कहा गया कि अगर उसके घर में वेस्टर्न स्टाइल का टॉइलट है तो वह उसे इंडियन स्टाइल का बनवा ले।

कई लोगों ने उठाए सवाल

सकीना अपने समुदाय में इकलौती नहीं है जिसे इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है। बोहरा समाज के कई लोगों से यह गुजारिश की गई है। सकीना ने इस संदेश को मानने से मना कर दिया क्योंकि उसकी पीठ में दर्द रहता है। सकीना ने बताया कि उसे स्लिप डिस्क की समस्या है। वह इंडियन टॉइलट का प्रयोग नहीं कर सकती। यह बहुत ही भद्दा फरमान है। लोगों को जिस टॉइलट में सुविधा हो, उसे इस्तेमाल करने की आजादी मिलनी चाहिए। धर्म भी इस तरह का काम करने को नहीं कहता है।

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यह तो एक तह का तानाशाही फरमान है। बोहरा समुदाय की 60 वर्षीय बुजुर्ग ने अपने पड़ोसी का हवाला देते हुए बताया कि उसे मरोल मस्जिद से एक फोन आया और उन्होंने भी उसे इंडियन टॉइलट बनवाने को कहा। ऐसे में उन्होंने फैसला किया कि जब वह उनके पास प्रार्थना लेकर आएंगे तो वह उन्हें मना कर देंगे। टॉइलट का स्टाइल बदलना बहुत खर्चीला है। इससे लीकेज की समस्या भी हो सकती है।

संस्कृति का हवाला

टॉइलट का यह बंधन सिर्फ मुंबई में ही नहीं बल्कि अमेरिका और यूरोप में भी फैल रहा है जहां पर दाऊदी बोहरा समुदाय के लोग रहते हैं। इसी समुदाय से जुड़े सूरत के एक व्यक्ति ने बताया कि वहां की मस्जिद से लोगों के घरों में जांच की जा रही है। लोगों को फॉर्म दिए जा रहे हैं और लोग उनके घरों में जाकर टॉइलट की जांच कर रहे हैं। इस मामले में समुदाय के प्रवक्ता से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वेस्टर्न टॉइलट प्रयोग करना उनकी संस्कृति के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि इंडियन स्टाइल का टॉइटल स्वास्थ्य के हिसाब से भी लाभदायक है। लोगों के बीच जागरुकता फैलाने के लिए यह अभियान चलाया जा रहा है। जो स्वास्थ्य संबधी समस्याओं के चलते इंडियन टॉइलट प्रयोग नहीं कर सकते हैं, उन पर कोई दबाव नहीं है। हालांकि, उन्होंने माना कि बुजुर्गों के लिए इंडियन टॉइलट का इस्तेमाल करना कठिन है। इसी समुदाय के एक शख्स ने बताया कि उपदेश के दौरान कई तरह की बातें स्वास्थ्य को लेकर बताई जाती हैं। यहां तक कि सामुदायिक शौचालयों में भी वे लोग टॉइलट सीट नहीं छूते हैं। यह उनके जीने का तरीका है। इस तरह की मूलभूत सलाह जो स्वास्थ्य को लेकर दी जाती है वह कोई फरमान नहीं होती हैं।

(साभार-एनबीटी)

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