आसान नहीं होगी राहुल की राजनीतिक डगर, उम्मीदों की बांध पर बैठे कांग्रेसी

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राहुल गांधी कांग्रेस के निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित हो गए हैं। इसके साथ ही पार्टी में एक नए युग के दौर का आरंभ हो गया है, ‘राहुल युग’। माना जा रहा है कि एओ ह्यूम से सोनिया गांधी तक के कांग्रेस अध्यक्षों से अलग होगा राहुल युग। राहुल गांधी के सामने संगठन को एक मजबूत ढांचा देने की बड़ी चुनौती होगी तो देश में साफ सुथरी राजनीति की मिसाल पेश करने के साथ प्रमुख विपक्षी दल के रूप में अपनी विदेश, आर्थिक और आतंकवाद से जुड़ी नीतियों को रखने की बड़ी चुनौती भी होगी। कई मुद्दों पर त्वरित निर्णय लेने होंगे तो गणेश परिक्रमा करने वालों से किनारा भी करना होगा। सबसे बड़ी चुनौती पार्टी की साख को पुनर्जीवित करने की होगी।

आज की तारीख में कांग्रेस के पास खोने को कुछ खास नहीं पर पाने को पूरा देश है। वो किस तरह से युवाओं में नई ऊर्जा का संचार कर पाते हैं। महिलाओं, गरीब तबकों, किसानों, कामगारों, मेहनतकश लोगों, व्यापारियों के बीच किस तरह से विश्वास जमा पाते हैं यह कब चुनौतीपूर्ण नहीं होगा। साथ ही उन्हें सिर्फ विरोध के लिए विरोध की नीति से ऊपर उठ कर अपनी नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने की बड़ी जिम्मेदारी भी होगी और यह तभी संभव है जब फ्राम टॉप टू बॉटम संगठन को दुरुस्त किया जाए।

एक-एक पदाधिकारी की जिम्मेदारी ही नहीं उसका दायित्व निर्धारित किया जाए। 24 अकबर रोड में बैठ कर पार्टी के नाम पर व्यापार करने वालों पर शिकंजा कसना होगा। आन जन के बीच तभी वो अपना विश्वास जमा पाएंगे। ये कहना है वाराणसी के वरिष्ठ कांग्रेसियों का। हालांकि उन्हें उम्मीद है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी में एकदम से तो नहीं पर धीरे-धीरे बड़ा परिवर्तन दिखेगा।

कांग्रेस ही नहीं देश के लिए क्रांतिकारी होगा

पिछले दो-तीन साल से कांग्रेस में उहापोह की स्थिति थी। दो पॉवर सेंटर थे। ऐसे में त्वरित निर्णय नहीं हो पा रहा था। बड़े से बड़े मुद्दे पर निर्णय लेने में विलंब होने से वो बात बन नहीं पाती थी। लेकिन राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद एक पॉवर सेंटर होगा। सोनिया गांधी एडवाजरी कमेटी में होंगी, बड़े मसलों पर विचार विमर्श होगा उनके साथ। वह अपने अनुभव साझा करेंगी। लेकिन हर मामला दो पॉवर सेंटर में नहीं लटकेगा। यह बड़ी और महत्वपूर्ण बात होगी।

दूसरे अध्यक्ष बवने से ठीक पहले जिस तरह का त्वरित निर्णय राहुल गांधी ने वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर के बारे में लिया वह दर्शाता है कि वह त्वरित निर्णय लेने के गुरेज नहीं करेंगे। अनुशासन कायम होगा। इसके लिए किसी की भी बली दी जा सकती है। उसकी वरिष्ठता कोई मायने नहीं रहेगा। अब कोई फाइल दो जगह नहीं घूमेगी। किसी भी मुद्दे पर सीधे तौर पर पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी से वार्ता होगी। नई एडवाइजरी कमेटी बनेगी, उसमें अनुभवी और नए लोगों का सामंजस्य होगा।

जहां तक संगठन की बात है तो फ्राम टॉप टू बॉटम पार्टी कमजोर हो चुकी है। एआईसीसी से लेकर बूथ स्तर तक संगठन में खामियां ही खामियां नजर आती हैं। इसे मैनेज करना होगा। दूसरे पार्टी को अपनी विदेशी नीति, आर्थिक नीति, आतंकवाद, जम्मू-काश्मीर मुद्दा तथा पाकिस्तान और चीन से कूटनीतिक संबंधों पर अपनी दृष्टि स्पष्ट करनी होगी। रोजी रोजगार , किसान हित पर नीति का खुलासा करना होगा। लेकिन उम्मीद है कि अब टाइम पास की जगह एक एनर्जेटिक लीडरशिप मिलेगी। नए और पुरनियों के बीच सामंजस्य स्थापित होगा। कुछ नकारात्मक सोच वाले पुरनियों को रिटायर भी किया जाएगा। राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रांतीय व जिला, शहर, ब्लाक लेबल पर परिवर्तन होगा। मणिशंकर अय्यर जैसों पर त्वरित निर्णय आएगा।

देश में सांस्कारिक राजनीति का सूत्रपात होगा

कांग्रेस पूरे देश में मजबूत हो कर उभरेगी। गुजरात चुनाव ने राहुल गांधी का कद बहुत ऊंचा कर दिया है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह , पूरी केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारें और दूसरी तरफ अकेले राहुल गांधी और सब पर भारी। यह दर्शाता है कि राहुल गांधी अब राजनीतिक दृष्टि से परिपक्व हो चुके हैं। उन्होंने जिस सांस्कारिक राजनीति का सूत्रपात किया है वह दर्शाता है कि आने वाले दिनों में देश की राजनीतिक दिशा में परिवर्तन आएगा।

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दूसरे वह अनुशासन के साथ कोई समझौता नहीं करने वाले, भाषायी नियंत्रण पर उनका पूरा ध्यान रहेगा। अशोभनीय टिप्पणी नहीं चलेगी। यह उन्होंने मणिशंकर अय्यर पर त्वरित कार्रवाई कर दर्शा दिया है। उन्होंने दिखा दिया है कि उनके लिए कोई बड़ा या छोटा नहीं, जिस स्तर से गड़बड़ी होगी उसे उसका खामियाजा भुगतना ही होगा। अब क्विक डिसीजन होंगे। हालांकि पार्टी को मजबूती प्रदान करना बड़ी चुनौती होगी। लेकिन यह लगता है कि आने वाले चुनावों में पार्टी अच्छा परिणाम देगी।

पार्टी में जोश व होश दोनों का बराबर समन्वय होगा। दोनों को समान जगह मिलेगी। पुरनियों के अनुभव और युवाओं के जोश के समिश्रण से पार्टी पुनः शीर्ष पर पहुंचेगी। तत्काल बड़े पैमाने पर कोई फेर बदल भले न नजर आए संगठन में पर धीरे-धीरे बदलाव तो आएगा। गणेश परिक्रमा नहीं चलने वाली है। -प्रदेश उपाध्यक्ष, डॉ राजेश मिश्र

झूठ-फरेब की राजनीति का माकूल जवाब देना बड़ी चुनौती

बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती देश में फैले झूठ-फरेब की राजनीति का माकूल जवाब देना होगा। लेकिन राहुल गांधी के बॉडी लैंगवेज से लगता है कि डैस्टिक चेंज नजर आएगा पार्टी के अंदर से लेकर देश के राजनीतिक वातावरण तक में। पार्टी में सत्ता प्रतिष्ठान के इर्द-गिर्द चक्रमण करने वालों के दिन अब लदने वाले हैं। सबसे बड़ी बात यह कि अगर राहुल गांधी के हाथ में देश की बागडोर आई तो यह मान कर चलना चाहिए कि गरीबो, किसानों और युवाओं के सुनहरे दिन आएंगे। इन सभी मुद्दों पर राहुल गांधी क्रांतिकारी कदम उठाएंगे।

गरीबों के मसीहा के रूप में उभर कर आएंगे। गरीबों, किसानों और युवाओं के लिए राहुल गांधी ही काम करेंगे। हम लोग एक नए युग के रूप में देख रहें, राहुल के नेतृत्व वाली कांग्रेस को। राहुल में बड़े फैसले लेने की क्षमता है। वह ज्यादा अटैकिंग हैं। वह डै्टिक चेंज लाएंगे पार्टी और देश की राजनीति दोनों में। हालांकि संगठनात्मक ढांचे की मजबूती उनके लिए बड़ी चुनौती होगी। कूड़े से क्रीम को निकालना है। यह काम हड़बड़ी में नहीं होगा। इसे धीरे-धीरे ही करना होगा। इसमें समय लगेगा। लेकिन परिवर्तन आएगा जरूर।- वरिष्ठ कांग्रेस नेता, अनिल श्रीवास्तव

दुविधा की स्थिति खत्म हुई

वरिष्ठ कांग्रेस नेता बैजनाथ सिंह के अनुसार कांग्रेस में अब दुविधा की स्थिति खत्म हुई। अब सत्ता का एक केंद्र होगा। फिर टीम लीडर बनने के बाद स्वयं राहुल गांधी के अंदर आत्मविश्वास में वृद्धि होगी जो स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस बढे आत्म विश्वास से उनकी छवि निखरेगी। दरअसल पार्टी के पास खोने को कुछ नहीं, पर पाने को पूरा देश है। अब कम से कम एक डिसीजन मेकिंग वह भी क्विक डिसीजन वाला सिस्टम सामने दिखेगा।

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मम्मी, दादी और पापा के लोगों वाले संबंधो को आधार मान कर जिन निर्णयों में देरी होती थी तो वह अब नहीं होगा ऐसा लगता है। लेकिन साथ ही राहुल गांधी को संगठन को नया स्वरूप देने की बड़ी चुनौती भी होगी। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर से लेकर ब्लाक और वार्ड-बूथ स्तर तक जिम्मेदारी व दायित्व निर्धारित करना होगा। जो काम करेगा उसे प्रमोशन जो नहीं करेगा उसे बाहर का रास्ता दिखाना होगा। संगठन में स्टेट्समैन तैयार करने होंगे जो पार्ट के प्रति निष्ठावान हों।

वैचारिक टीम गठित करनी होगी जो सही वक्त पर सही डिसीजन ले सके, सही राय दे सके। एक नया मैक्नीज्म डेवलप करना होगा। सीडब्ल्यूसी में कुछ अनुभवी और कुछ नए लोगों को शामिल कर ऐसा सामंजस्य बनाना होगा कि किसी की उपेक्षा भी न हो और किसी को ज्यादा तवज्जो भी न दिया जाए। धूर्त, चमचे और गणेश परिक्रमा करने वालों से सावधान रहना होगा। यह सबसे बड़ी चुनौती है। और यह काम एआईसीसी से लेकर वार्ड व बूथ लेबल तक करना होगा। लोगों मे जिम्मेदारी का भाव जगेगा तभी क्रांति दिखेगी।

साभार- पत्रिका

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